पद्मश्री डॉ. रबींद्र नारायण सि ंह
स्वास्थ्य और समाज को समर्पित
डॉ. रबींद्र नारायण सिंह बिहार के चिकित्सा क्षेत्र का एक प्रसिद्ध नाम हैं। उन्होंने चिकित्सा और परोपकार दोनों क्षेत्रों में व्यापक काम से एक अलग पहचान बनाई है। वे देश के प्रसिद्ध रोटेरियन और ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ हैं। डॉक्टर सिंह ने अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में बहुत संघर्ष किया और पटना के कदमकुआं इलाके में एक छोटे से कार गैराज से अपने क्लिनिक की शुरुआत की। समय के साथ उनकी शोहरत बढ़ती गई। बाद में उन्होंने कंकड़बाग में अनूप इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्थोपेडिक एेंड रिहैबिलिटेशन की स्थापना की। इसके अलावा पटना में उन्होंने सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त सवेरा कैंसर एेंड मल्टी स्पेशियलिटी हॉिस्पटल के नाम से एक बहुत बड़े अस्पताल की शुरुआत की है जिसका उद्घाटन हाल ही में हुआ है। उन्होंने बिहार के सहरसा स्थित अपने गोलमा गांव में भी एक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की शुरुआत की है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए आउटलुक पत्रिका समूह ने 2018 में उन्हें ‘आइकन्स ऑफ बिहार’ अवार्ड से सम्मानित किया है
बिहार के सहरसा जिले के गोलमा गांव में जन्मे डॉ. रबींद्र नारायण सिंह ने 1970 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की और 1976 में उसी कॉलेज से एमएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड का विकल्प चुना और नॉटिंघम में क्वींस मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में शिक्षक के रूप में काम करने के अलावा और भी कई संस्थानों में काम किया। उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने से पहले डॉक्टर सिंह पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी के शिक्षक थे।
1976 में डॉ. रबींद्र ने एडिनबर्ग के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (एफआरसीएस) की फैलोशिप प्राप्त की। वे लंबे समय तक इंग्लैंड में रहे और लिवरपूल विश्वविद्यालय से आर्थोपेडिक्स में एमसीएच डिग्री प्राप्त की। एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में विख्यात डॉ. रबिंद्र को विदेशों से नौकरियों के कई प्रस्ताव मिले। लेकिन उनके पिता, जो कि अपने समय के मशहूर जिला जज थे, की इच्छा थी कि रबिंद्र लौटकर अपने देश की सेवा करें।
देश लौटने के बाद से डॉ. रबींद्र पटना के कंकड़बाग क्षेत्र में 27 साल पुराने राधा वल्लभ हेल्थ केयर एेंड रिसर्च फाउंडेशन और अनूप इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स एेंड रिहैबिलिटेशन के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। उनके साथियों के अनुसार, डॉ. रबिंद्र द्वारा चलाए जा रहे 100 बेड वाले इस अस्पताल में अति आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। देश में इस मॉडल पर संचालित हो रहे केवल चार ही बड़े अस्पताल हैं-संचेती अस्पताल, पुणे; कुलकर्णी संस्थान, मिराज; गंगा अस्पताल, पुडुचेरी और भट्टाचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स, कोलकाता। डॉ. रबिंद्र नारायण सिंह का झुकाव हमेशा से सामाजिक कार्यों की तरफ रहा। यही कारण है कि वे 1983 में पटना में रेडक्रॉस सोसाइटी के साथ जुड़ गए। लगभग तीन दशक पहले उन्होंने हर मंगलवार को 20 मरीजों को मुफ्त इलाज देना शुरू किया और आज भी यह क्रम जारी है। वर्ष 1990 तक डॉ. रबिंद्र पटना के राजेंद्र नगर इलाके के एक अनाथालय किशोर दल शिशु भवन से जुड़ चुके थे। डॉ. रबिंद्र के परोपकार के कार्यों में उत्साह और प्रतिबद्धता को महसूस करते हुए शिशु भवन के तत्कालीन व्यवस्थापक रंजीत भाई को उनसे बहुत अधिक उम्मीदें थीं। डॉ. रबिंद्र रंजीत भाई की उम्मीदों पर खरे उतरे और उनकी मदद से भवन में करीब 30 अनाथ बच्चियों को आश्रय मिला। बाद में इन लड़कियों के लिए पास के रवींद्र बालिका विद्यालय में मुफ्त शिक्षा का इंतजाम किया गया। आखिरकार, उन्होंने न केवल इन लड़कियों की शादी अपने खर्च पर करने में मदद की बल्कि उन्हें अपने निजी अस्पताल में रोजगार भी दिया। डॉ. रबींद्र 1994 से ही पटना के कुम्हरार स्थित एक संस्था अंतरज्योति बालिका विद्यालय के सदस्य के रूप में भी जुड़े हुए हैं। डॉ. रबिंद्र की एक अन्य परोपकारी पहल भारत में लड़कियों के घटते अनुपात और उनकी शिक्षा की चुनौती पर केंद्रित है। इन मुद्दों का हल निकालने के लिए उन्होंने अपनी मां स्वर्गीय इंदु देवी की याद में ‘इंदु देवी छात्रा प्रोत्साहन राशि’ की शुरुआत की। इस पहल के तहत उनके पैतृक गांव गोलमा की मेधावी छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाती है, ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने अध्ययन को पूरा कर सकें और एक स्वस्थ तथा प्रगतिशील राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। 2003 में उनकी तीसरी बेटी पुष्पांजलि सिंह की असामयिक और आकस्मिक मौत ने डॉ. रबिंद्र और उनकी पत्नी कविता सिंह को गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा और छात्रवृत्ति देने के लिए एक और पहल शुरू करने के लिए प्रेरित किया। ‘पुष्पांजलि शिक्षा केंद्र’ नाम से शुरू इस संस्थान की जिम्मेदारी कविता सिंह खुद संभालती हैं। यह केंद्र गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले दर्जनों लड़के और लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देता है। डॉ. आर.एन. सिंह का मानना है कि किसी को सशक्त बनाने में शिक्षा से अधिक किसी चीज का योगदान नहीं है। इसीलिए अपने कई प्रयासों से वे खुद संतुष्ट नहीं होते और अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद ‘हर एक को एक सिखाए’ के सिद्धांत का प्रचार करना जारी रखते हैं। इसके तहत डॉक्टर सिंह समाज के अच्छे लोगों से एक कन्या को अपनाने और उसकी शिक्षा की जिम्मेदारी लेने की अपील करते हैं, ताकि वह समाज की मुख्यधारा में आ सके।
2009 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आर.एल. भाटिया ने डॉ. रबींद्र को रेडक्रॉस में उनके काम के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था। 2010 में, उन्हें सामाजिक कार्यों और चिकित्सा क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पद्मश्री डॉ. रबींद्र न केवल पटना में बिहार नेत्रहीन परिषद के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं, बल्कि नेत्रहीन लोगों को मुख्यधारा में लाने के उनके प्रयास सभी के लिए एक सशक्त उदाहरण हैं। डॉ. रबींद्र के जीवन पर दिनेश आनंद द्वारा निर्देशित एक फिल्म ‘ए डॉक्यूमट्री ऑन डॉ. रबींद्र’ यू-ट्यूब पर सर्च करके देखी जा सकती है।